"नर्मदा का वो लाड़ला दुलारा''- प्रेमशंकर रघुवंशी
माताचरण मिश्र पिछले बरस की फरवरी के दिन थे। पेड़ों की शाखों से बादामी रंग के सूखे हुए पत्ते झर रहे थे। प्रकृति नया रंग बदल रही थी "पुराने का पतन होकर नया उत्थान पाता है...." क्या यही वसन्त का आना भी है, जहां पुराने पत्तों का झरना और नये पत्तों के आने का क्रम जारी रहता है मिटना और बनना साथ…