कविता
चंद्रभानु भारद्वाज
बार-बार
खुलते टी.वी. के मुंह
खुलती तस्वीरें
सियासत के सहूलियतों की
कोई राह
कोई हरकत
यदि दिखती तो सिर्फ एक कि
खिली धूप के बीचों बीच दिखता है
लोगों का सैलाब पसरा पड़ा है
पूरे कंठ भरे भर्राती आवाजों में
सवालों से भरा लवालब कोई महासागर....
प्रश्नों भरी आबादी का समाधान कोई नहीं
लड़ना लड़ना या मरना पोस्टरों के हिस्से
लड़ना भी सीमाहीन
सड़कों पर हर रोज हुजूमों में दाखिल लोग-बाग
पुलिस की लाठियों का दमदार कौशल...देखें
देखें लड़ाकों की आकृतियां भी।
जुल्म के कोड़ों से बेहाल होकर भी
हैं आज भी सड़कों पर वे
अपनों की मेहरबानियां गले में डाले हुए
मखौल उड़ाते लोगों में विलीन वे
अनादिकाल से आज तक वे हैं-सब हैं
शायद यह लड़ाई कभी खत्म न होने वाला कोई सपना हो।
कुरूक्षेत्र से जारी है एक लड़ाई
अभी तक....