कविता
रंजना श्रीवास्तव
खामोशी की नदी में
लेटी है सांझ
अभी तक ठहरा है
गुजरे हुए वक्त का पानी
समय के विशाल दरवाजे से
झांकती है सदी की चौखट
वहां किसी मकान में
कोई कहानी दबी पड़ी है
किसी का कहानी हो जाना
उसे जिंदा दफ्न किया जाना है
कितनी कहानियों
और कितने समयों के बीच
फंसा हुआ है फांसी का फंदा
लड़कियों के बारे में
कोई नहीं कह सकता
कि कब तक जिंदा रहेंगी
और कब मार दी जाएंगी
मेरी कविताओं में
जब भी बजती हैं झांझरें
एक तलवार
सनसनाती है साथ-साथ
खुशियां जब भी
मारती हैं किलकारी
एक जंगल डराता है
सांय-सांय करता हुआ
सभ्यता के इस दौर में
जब जगमगाती हैं
मेट्रोपोलिटिन सभ्यताएं
लड़कियां अंधेरी सुरंगों से
गुजारी जा रहीं हैं
सभ्यता के इस दौर में
पागल वासनाएं
बच्चियों के जिस्म में
भर रहीं हैं जहर
इस दौर में ऐसी कौन सी चीज है
जिसे जिन्दगी से
जोड़कर देखा जाना चाहिए?
ऐसा कौन राजा है जो सोचता है
प्रजा के सुख-दुःख की बात?
मैंने अपनी पेंटिंग में
एक स्याह समय
और अंधेरे का नक्शा खीचा है
क्या आप इसे गलत कह सकेंगें?